Sunday, June 29, 2014

ई जर्नलिज्म


'जब भी बोलना वक्त पर बोलना, मुद्दतों सोचना मुख्तसर बोलना।' वाचिक परम्परा की इस सीख के साथ  पत्रकारिता के पहले संवाददाता नारद, आद्य संपादक वेद व्यास, सर्वप्रथम लाइव टेलीकास्ट करने वाले महाभारत के संजय आदि से प्रारंभ होकर पत्रकारिता ने एक लंबा रास्ता तय किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मुगलकाल के वाक्यानवीस तथा प्रथम स्वातंत्र्य समर (1847) काल में रोटी व कमल प्रतीक के बाद राजकीय मुनि और सुदूर देहाती क्षेत्रों में ठेठ हरकारों या संवदियों से गुजरते हुए पत्रकारिता अपने वर्तमान अत्याधुनिक व क्रांतिकारी स्वरूप ई जर्नलिज्मतक आ पहुंची है।

पत्रकारिता की क्रांति करार दी जाने वाली यह ई जर्नलिज्मक्या है? इसे ना केवल हम सबको जानने की आवश्यकता है बल्कि यह समय के साथ कदमताल करते हुये टिके रहने और आगे  बढ़ने की अनिवार्य शर्त भी है। जो माध्यम जितनी शीघ्रता से सूचना देगा वह उतना ही अधिक सफल होगा। इस प्रकार ईलेक्ट्रानिक्स आधारित अब तक के सबसे तेज और सर्वत्र उपलब्ध पत्रकारिता माध्यम का ही नाम है- ई-जर्नलिज्मई-जर्नलिज्मको सुविधानुसार वेब-मीडिया या सायबर मीडिया भी कहते हैं।

सूचना प्रोद्यौगिकी, तकनीकी खोज व अविष्कार तथा इसके रोज बढ़ते प्रयोग और इंटरनेट के विस्तार ने ई-जर्नलिज्मके फलक को और फैलाया है। ग्लोबलाईजेशन के दौर में ज्ञान, दर्शन, अध्यात्म और रचनात्मक सृजन के मानदंडों के साथ अत्याधुनिक तकनीकों के तालमेल से पत्रकारिता का फैलाव क्रांतिकारी स्तर तक हो गया है। पलक झपकते ही समूचे संसार से रूबरू होने का सहज साधान बनकर उभरा है ई जर्नलिज्म। सार्वकालिक सत्य है कि सूचना में शक्ति है।

आज इंटरनेट के विस्तार के साथ ही यह शक्ति नित बड़ी संख्या में न्यूज पोर्टल, वेबसाईट, ब्लाग, कियास्क, सोशल नेटवर्किंग साईट आदि के अस्तित्व में आने से बढ़ती जा रही है। यही नहीं आज सारे अखबार और चैनलों में भी अपने इंटरनेट संस्करण लांच करने को लेकर होड़ मची है। प्राप्त हो रहे तमाम समाचारों के बाद में ईमेल आईडी या वेबसाइट का पता मौजूद रहता है। हर छोटे-बड़े कार्यालयों में इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध है। डाउनलोड करने या फिर नागरिक पत्रकारिता के नाम पर समाचार अपलोड कर सकने की सुविधा ने ई-जर्नलिज्मको और आगे बढ़ाया है।

पत्रकारिता जगत में हो रहे विकास और बदलाव की इन गतिविधियों से अपना देश भारत भी अछूता नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में अपनी ओर से काफी सार्थक और सक्रिय भागीदारी कर रहा है। इस क्षेत्र में काफी बदलाव आने अभी शेष हैं। इसके फलक व्यापक और बहुआयामी होने से सूचना संग्रह, उसकी साज सज्जा और आर्कषक प्रस्तुतीकरण के काम में काफी संख्या में प्रशिक्षित और अनुभवी मीडियाकर्मियों की आवश्यकता बढ़ेगी। इस दृष्टि से पत्रकारिता प्रशिक्षण के अकादमिक स्वरूप में भी तीव्र बदलाव किया जाना प्रारंभ हो चुका है। अब तो नेट पत्रकार शब्द व्यवहार में सुलभ हो गया है। समाचार के कलेवर विस्तार से संक्षिप्त व वस्तुनिष्ठ होते हुये अब बाइट्स पर आ गये हैं।

पत्रकारों के डिजीटल होते जाने से कलम व कागज रोमांचक तरीके से तलाकशुदा होते जा रहे हैं। सूचना को त्वरित गति से रिसीवर तक पहुंचाने में संदर्भ ढूंढने में और विश्लेषण करने के समय की कटौती भी होने लगी है। साफ्टवेयर से चुनिंदा विषयों पर लेख लिखे जाने लगे हैं तो मानवीय भूलशब्द को भुला देना पड़ेगा।
ऐसी सब बातों के बावजूद पत्रकारिता के अन्य माध्यमों को कमजोर किये बिना ई-जर्नलिज्मअपने तय सीमा क्षेत्र में अपना रोल निभाने को प्रवृत्त है। हां, यह क्षेत्र अपने कामगारों से खास तरह के प्रशिक्षण और एकाग्रता की मांग जरूर करता है। इधर ऐसी सूचनाएं भी मिलने लगी हैं कि ई-जर्नलिज्मकी पढ़ाई के लिये ई-यूनिवर्सिटीभी खोली जाने लगी है। इस प्रकार की कई बेबसाइट तो पहले से ही मुहैया थीं। ऐसे दौर में माध्यम ही संदेश हैनामक अपनी पुस्तक में प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लूहन की लिखी उक्ति सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचना तंत्र हैअपनी प्रासंगिकता और समसामयिकता साबित कर रहा है।

(हिन्दुस्थान समाचार के नवोत्थान लेखमाला में 2010 में प्रकाशित)

Friday, August 2, 2013

छात्रों का अधिकार है छात्रावास

आज से ठीक एक साल पहले आईआईएमसी में हमारा सत्र शुरू हुआ था। मैं ढेर सारे नए दोस्तों से मिलकर काफी खुश था। यह खुशी यहां हॉस्टल नहीं होने की दिक्कतों पर भारी पड़ा।  जब यहां के लिए फॉर्म भर रहा था तब पता था कि छात्रों के लिए हॉस्टल नहीं होगा।  सत्र के दौरान कई बार शिगूफे सुने कि अगले बैच को ये सुविधा मिलेगी। इस बात की खुशी ने भी शायद अपनी सुविधा के लिए  संघर्ष टालने में भूमिका निभाई।

दिल्ली  आया था तो रेल मंत्रालय के गेस्ट हाउस, अपने भाई अभिषेक भारद्वाज के मॉडल टाउन फेज तीन के फ्लैट और फिर  दो सिनियर पत्रकारों के साथ  पहाड़गंज में टूकड़ों में  रिहाईश की। मेट्रो तब केंद्रीय सचिवालय तक ही था। 15 अगस्त 2010 को यह हौजखास तक बढ़ा।  कॉमनवेल्थ खेल में इंटर्नशिप के बाद पहले सेमेस्टर की परीक्षा को ध्यान में रखते हुए आईआईएमसी के पास किशनगढ़ शिफ्ट हुआ। मोटरसाइकिल से पढ़ने आते-जाते वक्त कई बार पुलिस को चालान देना पड़ता था। कारण हमेशा ट्रिपल लोड होता था।

सर्दियों  में सुबह में होने वाला चर्चा सत्र छूट ही जाता था। बहुत कोफ्त होती थी। लाइब्रेरी-लैब में बैठे दोस्तों को ठिकाने के लिए जल्दी निकलना होता था। उन सबसे कई जरूरी बातें अधूरी रह जाने का मलाल आज भी है।


भोजन आदि के लिए प्रायः पड़ोस के एनआईआई, जेएनयू, सेकुलर भवन, बेरसराय या कटवारिया सराय जाना होता था। अपने कमरे पर हमेशा देर से पहुंच पाते थे।  अपना तो मानसिक अनुकूलन बना दिया गया था। जीवन में कभी  हॉस्टल में नहीं रहा। इस सुख  का कोई अनुभव नहीं। हाई स्कूल के दौरान शिक्षाविद कृष्ण कुमार के साक्षात्कार में छात्र जीवन के विकास में हॉस्टल की तरफदारी पढ़ चुका था। यह छात्रों का हक भी है।

आईआईएमसी  के सिनियर और यहां हॉस्टल के लिए संघर्ष कर रहे दोस्तों  ने इस ओर फिर से ध्यान दिलाया।  तो सिक्वेंस में सोचना पड़ा। सुना है कि अगले बैच को यह सुविधा मिलेगी। यह बात सुनने-सुनाने तक ही ना रह जाए। इसलिए हम साथ-साथ हैं।     26 जुलाई, 2013

Wednesday, December 26, 2012

प्रोटेस्ट को कवर करने आये मीडिया कर्मियों की एक पड़ताल


स भयानक हादसे का एक हफ्ता पूरा हो गया है. पीड़िता को सहानुभूतियों के अलावे क्या हासिल हुआ है? सोचने की इस एक बात से आगे अनेक बातें और हैं. बहरहाल देश–विदेश के अलग–अलग हिस्सों के बरक्स बलात्कार और बलात्कारियों के लिए सर्वाधिक माकूल जगह दिल्ली में कुछ चुनिन्दा जगहों पर हो रहे जन-आंदोलनों और उसकी कवरेज़ के लिए पहुंचे पत्रकार दोस्तों से बात करके हमने उनकी सोच और संवेदना की जमातलाशी करने की कोशिश की. मुनिरका, जंतर मंतर, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, मुख्यमंत्री आवास, गृह मंत्री के दफ्तर, दस-जनपथ और सफदरजंग अस्पताल के सामने आन्दोलन कर रहे छात्र-छात्राओं, आमजनों और राजनितिक कार्यकर्ताओं की गतिविधियों को कवर कर रहे इलेक्ट्रोनिक मीडियाकर्मियों से गपशप की तो कई बातें उभरकर सामने आई.


समाज, कानून, दर्शन वगैरह की बातों से परे हटकर सीधे-सीधे मन की बात कहने का हमने आग्रह किया तो लोग खुल कर सामने आये.

जगह- मुनिरका, समय- दोपहर से ठीक पहले, दिन-पहला


सड़क जाम कर रहे और उसके बाद वसंत विहार पुलिस थाने के सामने मानव श्रृंखला बना रहे छात्र –नौजवानों को कवर करने आये कई मीडियाकर्मी हादसे से ठीक तरह से वाकिफ नहीं थे शायद, देर से उठकर सीधे असाइनमेंट पर आ जाने से बेखबर होने को जस्टिफाई किया उन सबने , खैर !

जगह- सीएम आवास के सामने, समय- दोपहर के आसपास, दिन– दूसरा

स्टुडेंट्स पर वॉटर कैनन और आंसू गैस के गोले बरसने की शुरुआत, कुछेक संजीदा संवाददाताओं में गुस्सा. पर जिनसे कुछ पूछा उसने कहा– ‘ऐसा होता है, सीएम् क्या कर सकती है.’
इसी दिन आई.टी.ओ. पर पुलिस हेडक्वार्टर के सामने जमा नौजवानों की बातों के  बजाय कमिश्नर से मिलने पहुंची राज्यसभा सांसद जया बच्चन का इंतज़ार कर रहे मीडिया के दोस्तों ने सवालों से पहले ही कहा – समझते तो तुम हो ही चीजें ....

जगह- सफदरजंग अस्पताल, समय– शाम सात बजे, दिन- तीसरा

जे.एन.यू. छात्रसंघ और विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट यहाँ मोमबत्ती जलाकर पीड़िता के लिए समर्थन और दोषियों को सख्त सजा की मांग कर रहे थे. पुलिस आंदोलन की विडियोग्राफी करवा रही थी और हिदायते देने में लगी थी . मिडिया की बड़ी भीड़ में कुछ ने जवाब देने का समय निकाल लिया. ज्यादातर मीडियाकर्मियों ने रिपोर्ट में अपना नाम ना देने का वादा पहले करवा लिया .

सवाल –
*आपका इस दिल दहला देनेवाले हादसे के बारे में क्या सोचना है ?
*अपराधियों को सजा के बारे में आपकी राय ..?
*ऐसे दर्दनाक हादसे फिर ना होने पाए के लिए आपके सुझाव..?
*सरकार से आपकी मांग ..?
*दिल्ली को लेकर आपकी चिंता ?

एक मशहूर बिजनेस चैनल की महिला रिपोर्टर – “आई एम् सो हैप्पी ...फाइनली आई एम डीप्ल्योड हियर. यहाँ ऑनस्क्रीन रहने के ज्यादे चांस हैं. सरकार क्या करेगी ? लोगों को ही कुछ करना होगा.”

खबरिया चैनल की महिला रिपोर्टर – “मेरी पूरी संवेदना है पीड़िता के साथ.” फिर चुप्प ..

अंग्रेजी खबरिया चैनल का रिपोर्टर जो सड़क पर ‘लेट’ कर भी लिंक दे रहा था – “अपराधियों को चौराहे पर फांसी देना चाहिए. दिल्ली बेकार शहर है.”

अंग्रेजी खबरिया चैनल का एक रिपोर्टर – “इट्स नॉट माय बिजनेस . आई एम् डूइंग माय जॉब . फांसी लोगों के कहने से दी जाती है क्या ?? ”

इसी दरम्यान एक क्रिस्पी खबर आने से सब एक तरफ निकल पड़े.

जगह- जंतर मंतर, समय- दोपहर एक बजे , दिन- चौथा

‘आप’ का धरना प्रदर्शन . यहाँ महिला पत्रकारों की संख्या औसतन काफी कम .

सवाल – वही.

ज्यादातर पत्रकारों के मिलते जुलते जवाब. यहाँ पत्रकार भी लोगों को सोनिया गाँधी के घर की ओर कूच करने की सलाह दे रहे हैं.

जगह- इण्डिया गेट, समय-शाम के तक़रीबन आठ बजे, दिन– पांचवां

एक सामजिक संस्था के लोग यहाँ अन्तः वस्त्रों की होली जला रहे हैं. एक थियेटर ग्रुप के लोग नुक्कड़ नाटक कर लोगो को जागरूक कर रहे हैं .

सवाल- ज्यादातर वही, एक सवाल नया कि आप इस पुरे घटनाक्रम में अपनी भूमिका  कहाँ देखते हैं?

ज्यादातर  लोगों को कहना है कि उन्हें जो करना है कर रहे हैं . सरकार पर दवाब बनाना सबसे बड़ा उपाय है . बाकी पहले के सवालों के जवाब वही स्टीरियोटाईप .

जगह- राष्ट्रपति भवन क सामने, समय– दोपहर के पहले से अँधेरा होने तक, दिन- चौथे से सातवें तक

पानी की बौछारें दी जा रही हैं संघर्ष कर रहे लोगों पर. आंसू गैस के गोले के साथ लाठियां भी स्टूडेंट्स पर बरसा रही है पुलिस. लोगों के गुस्से के बीच  कई बड़े टीवी पत्रकार पहुंचे हुए हैं. आपाधापी के बीच सवाल कि लोगों को फैसले के लिए कितना इंतज़ार करना पड़ेगा. इसके लिए आपकी ओर से कोशिशों की कोई जानकारी..

जवाब– यह तो वक़्त ही बताएगा . पीड़िता की तबियत सुधर रही है . कोर्ट जल्द ही कन्विक्सन देगा. बाकी पेंडिग केसेस के लिए भी फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का  दवाब बनाया जा रहा है ..पर यह वक़्त लेगा.

इसी बीच कुछ टीवी चैनल पर समाचार 'चमके' कि ‘असामाजिक तत्व हैं प्रोटेस्ट में’, ‘पुलिस पर पथराव किया गया है’ ‘हिंसक हो रहे हैं लोग’, ‘सुरक्षा घेरा तोडा जा रहा है’, ‘पुलिस तो बचाव कर रही है.’ इस बारे में इन रिपोर्टर्स से पुछा गया कि ‘साहब! राजपथ तो दिन में कई बार साफ़ किया जाता है. यहाँ पुलिस पर फैंकने के लिए जनता के पास पत्थर कहाँ से आ गया यहाँ तो दुकाने भी नहीं कि लोग बोतल खरीद कर पुलिस पर फैंकें. इस सवाल पर मीडिया कर्मी गुस्सा गए और कुछ तो व्यक्तिगत होने लगे.

अगले दिन इसका जवाब मिला कि रूलिंग पार्टी के स्टूडेंट विंग ने पत्थर से भरे झोले मंगवाए थे. कुछेक  पत्थरबाजों  की  तस्वीरें भी दिखाई गयी. खैर यहाँ सवाल करना इन सबके लिए ज्यादा हो जाता.

                    अब, जबकि प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री , गृहसचिव , कमिश्नर, उपराज्यपाल और रूलिंग पार्टी की सर्वेसर्वा इन सबका बयान आ चुका है. किसीने यह नहीं पूछा कि फास्ट ट्रैक सुनवाई और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा की  इतनी  संगठित इच्छाशक्ति के बावजूद अभी तक मामलें में चार्जशीट तक दाखिल नही किया जा सका है. क्यों हाईकोर्ट भी पुलिस और प्रशासन की अबतक की कारवाईयों को नाकाफी बता रहा है और नाखुश है?

जंतर मंतर पर पूर्व आर्मी चीफ वी के सिंह और 'राजनीति' योग गुरु रामदेव पर केस दर्ज हो चुका है, हजारों छात्र नौजवान और अवाम के साथ मीडियाकर्मी भी घायल हो गये हैं.  एक कांस्टेबल की संयोग से हुई मौत को पुलिस आला-अधिकारियों ने आन्दोलन के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भुनाने की असफल कोशिश की हैं..  पुलिस के इस फर्जीवाड़े की पोल जल्द ही खुल जाने से पुलिस की रही बची साख भी जाई रही है.  इस सबसे आगे सूचना और प्रसारण मंत्री ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए एडवाईजरी निकाल दिया है . कुल मिलाकर मामला थमा नहीं है.

चित्र सामने है , निष्कर्ष के लिए आप स्वतंत्र हैं. समाज में मिडिया के लिए काम कर रहे लोग भी शामिल हैं. जिम्मेदारी हर जगह की जड़ता और  यथास्थितिवादिता तोड़ने की उठानी होगी. नए सिरे से सोच रहे लोगो के साथ अपनी सोच और समझ को मिलाकर सहयोग का समय है. यह इंतज़ार का समय नहीं है ..कोशिशों का है. तो अपनी अपनी  जिम्मेदारियों के लिए अपने अंदर ही भूमिका की तलाश और खुद से ही शुरुआत करके हम आगे बढ़ेंगे . अगर नारीमुक्ति संघर्ष से जुड़े और पितृसत्ता के खिलाफ़ जमकर लड़े तो यह सिरा हमें तमाम सुधारों की  ओर  खुद-ब-खुद आगे ले जायेगा... तो निकलिए .. 

स्याह रात नाम नहीं लेता ढलने का ,
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का ....

Saturday, June 18, 2011

मेरे प्रिय १० सदाबहार गीत ---


क्रम          मुखड़ा                                                         फिल्म    वर्ष       गीतकार      संगीत             गायक
१. इतनी शक्ति हमें देना दाता.                                        अंकुश,    १९८६     अभिलास     कुलदीप सिंह      पूर्णिमा
२. ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी .....      --         १९६२    कवि  प्रदीप   चितलकर रामचंद्र   लता मंगेशकर
३. मैं कोई ऐसा  गीत गाऊं कि आरजू जगाऊ......             यस बॉस,   १९९७   जावेद अख्तर    जतिन-ललित     अभिजीत-अलका
४. एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल......                    धरम करम,  १९७५   मजरुह          आर डी बर्मन        मुकेश
५. आ भी जा  आ भी जा ऐ सुबह आ भी जा....               सुर,           २००२    निदा फाजली    एम् एम्  करीम    लकी अली
६. आवारा हूँ या गर्दिश में हूँ आसमान  का तारा हूँ ....    आवारा,      १९५१    इन्फो एन ऐ     शंकर-जयकिशन    मुकेश
७.कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे......                  पूरब और पश्चिम,    १९७१    इंदीवर         कल्याणजी-आनंदजी    मुकेश
८. छाप  तिलक सब छिनी मोसे नैना मिलायके अमन की आशाएं (एल्बम), २०१०  अमीर खुसरो,  कैलाश  खेर    कैलाश  खेर
९.किसीकी मुस्कुराहटों पे हो निसार,...                      अनाड़ी,         १९५९      शैलेन्द्र         शंकर-जयकिशन      मुकेश
१०. जय हो...........                                  स्लम डोग मिलेनिअर,    २००९   गुलज़ार        ऐ आर रहमान       ऐ आर रहमान

                                                                                                              

Saturday, May 21, 2011

समय, शब्द और स्व प्रबंधन का अभ्यास



नमस्ते!  आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं. मतलब आप अपनी तैयारी  के प्रति गंभीर हैं. आपने अबतक जो पढ़ा है उसका रिविजन कर लें. और हाँ , आप लिखने का अभ्यास पहले से कर ही रहे होंगे.क्या आपने अपना लिखा हुआ किसी हुनरमंद या वरिष्ठ पत्रकार से दिखवाया? आप इसे किसी शिक्षक  से भी दिखा सकते हैं . उनके निर्देशों को अमल में लाना आपकी लेखन क्षमता को विकसित करेगा. रोजाना अख़बार पढ़कर कैसा लगता है? इस विषय पर सोचना और उसको लिखने की कोशिश करना भी एक अच्छा अभ्यास हो सकता है.
बीते हुए पांच  साल के प्रश्नपत्र आपने देखे होंगे. इस से आपको एक अंदाज़ा मिला होगा. इस ब्लॉग के अन्य लेख आपको और अधिक शार्प कर चूका होगा. क्या आपने अपनी परीक्षा खुद ली है? प्रवेश परीक्षा के आखिरी दिनों में  यह कोशिश हमें बहुत मजबूत करती है.
हाल के दिनों में मशहूर हुए प्रमुख हस्तियों की जानकारी,घटनाक्रम के साथ ही आर्थिक गतिविधियाँ, खेल जगत और राजनितिक उतार चढ़ाव आदि परीक्षा के लिहाज से हमसे अटेंशन की उम्मीद रखता है. पत्रकार बनने की इच्छा है तो  मीडिया जगत पर नज़र रख ही रहे होंगे. इस विषय में कुछ न्यूज़ पोर्टल आपकी जरुरी मदद कर सकता है. 'ई ' या वेब जर्नालिस्म के दौर में  इससे जुड़े हुए सवाल होने की पूरी गुंजाईश है. हाँ , कंप्यूटर और इंटरनेट के बारे जानकर आप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.
अनुवाद का एक सवाल और वह भी बहुत स्कोरिंग होता है.इसके लिए लगातार  अभ्यास से बढ़कर दूसरा और कोई उपाय नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय  घटनाचक्र , कड़ी देशों में हो रहे जनांदोलन , अमेरिका-भारत-पकिस्तान के सम्बन्ध, विकिलीक्स के खुलासे , नीरा राडिया प्रकरण, निजता का मामला आसी मुद्दे के साथ ही विनायक सेन या अयोध्या फैसले को लेकर न्यायलय से जुडी हुयी बैटन पर भी एक सरसरी निगाह डाल लेनी चाहिए. इसके अलावे खुद से भी कई मुद्दे तलाश कर उसपर लिखने की तैयारी होनी चाहिए.
समय, शब्द  और स्व प्रबंधन आपको हर लिखित परीक्षा में कामयाब बना सकता है. भाषा,शैली, शब्द ज्ञान, सामान्य जागरूकता, लेखन कौशल इन सबकी जाँच परीक्षा में आमतौर पर की जाती है. आई आई एम् सी के सवाल आपकी यादाश्त और समझदारी दोनों के हिसाब से तय किये जाते हैं. आपका संतुलित और स्पष्ट लिखित जबाव उनको( जांच करने वाले को) प्रभावित करता है और आपको सफल.
सुना ही होगा आपने " practice makes parfect" तैयारी करते रहने से आत्मविश्वास बनता और बढ़ता है. यह हर जगह बना रहना चाहिए. इसमें एक एक बात और जोड़ लीजिये- "constant practice often exels even talent."
कहने का मतलब है की आखिरी दिनों में गैरजरुरी चीजों से बचना भी बहुत जरुरी है. मुद्रित अक्षरों के प्रति प्रेम ने आपको यहाँ तक पहुँचाया है. यही आपकी परीक्षा और आगामी पत्रकारीय जीवन में भी आपको सफल करेगा. प्रसन्नचित्त होलर पढना-लिखना जारी रखें, जमकर भोजन करें, नींद लें और इत्मिनान से परीक्षा देकर आयें.
साक्षात्कार के बारे में बातें आगे होगी.............
आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं.........
                     केशव कुमार 
iimccounselling.blogspot.com  से साभार

Sunday, April 24, 2011

अध्यात्म , चमत्कार और श्रद्धा के महानायक सत्य साईं बाबा का महा निर्वाण

 

यह खबर करोड़ों साईं अनुयायियों का दिल तोड़ देने वाली है। जो साईं भक्त नहीं है वे भी इस खबर से उदास हैं क्योंकि एक शख्स, जो जीवन भर रहस्यों से घिरा रहा, एक शख्स जो चमत्कारों से चौंकाता रहा, एक शख्स, जिसके सेवा कार्यों का देश-विदेश में विशाल साम्राज्य स्थापित है। ऐसे श्री सत्य साईं बाबा अब इस दुनिया में नहीं रहे। रविवार की सुबह करोड़ों लोगों के लिए ईश्वर का साक्षात अवतार रहे बाबा को तमाम चिकित्सकीय संघर्षों के बावजूद अंतत: नहीं बचाया जा सका। 


लगभग 40 हजार करोड़ की (घोषित) संपत्ति के मालिक श्री सत्य साईं बाबा का नाम दुनिया के किसी भी कोने में अपरिचित नहीं है। आज विश्व के 178 देशों में सत्य साईं केंद्र स्थापित हैं। 

भारत में सभी प्रदेशों के लगभग सभी शहरों व गाँवों तक में साईं संगठन हैं, जहाँ साईं भक्त श्री सत्य साईं बाबा के आध्यात्मिक नियमों का पालन करते हुए बाबा के पवित्र संदेशों का प्रसार कर रहे हैं। श्री सत्य साईं बाबा के पूरे विश्व भर में करोड़ों की संख्या में अनुयायी हैं जिनमें राजनीतिज्ञ, बड़े औद्योगिक घराने, कलाकार, बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं। 

बचपन के 'सत्य' 
श्री सत्य साईं का जन्म 23 नवंबर 1926 सोमवार कार्तिक मास, अक्षय वर्ष आद्रा नक्षत्र में, पूर्णिमा के बाद तृतीय तिथि ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। वे आंध्रप्रदेश के जिले अनंतपुर के अति दूरस्थ अल्पविकसित गाँव पुट्टपर्ती के श्री पेदू वेंकप्पाराजू एवं माँ ईश्वराम्मा की आठवीं संतान थे। कहा जाता है, जिस क्षण नवजात श्री सत्य ने जन्म लिया, उस समय घर में रखे सभी वाद्ययंत्र स्वत: बजने लगे और एक रहस्यमय नाग बिस्तर के नीचे से फन निकालकर छाया करता पाया गया।

सत्यनारायण भगवान की पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात शिशु का जन्म हुआ था, इसलिए शिशु का नाम सत्यनारायण रखा गया। श्री सत्यनारायण (सत्या) की प्रारंभिक शिक्षा पुट्टपर्ती के प्राइमरी स्कूल में हुई थी। आठ वर्ष की अल्प आयु से ही सत्या ने सुंदर भजनों की रचना शुरू की। वे बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। चित्रावती के किनारे ऊँचे टीले पर स्थित इमली के वृक्ष (कल्पवृक्ष) से साथियों की माँग पर, विभिन्न प्रकार के फल व मिठाइयाँ सृजित करते थे। इमली का वह वृक्ष आज भी मौजूद है। इन प्रसंगों की सत्यता के प्रमाण उपलब्ध हैं बावजूद इसके संदेह और सच में सदैव द्वंद्व कायम रहा। 

मैं साईं हूँ.... 
23 मई 1940 को 14 वर्ष की आयु में 'सत्या’(बाबा) ने अपने अवतार होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि 'मैं शिवशक्ति स्वरूप, शिरडी साईं का अवतार हूँ’। यह कह कर उन्होंने मुट्ठी भर चमेली के फूलों को हवा में उछाल दिया, जो धरती पर गिरते ही तेलुगू भाषा में 'साईंबाबा’ बन गए। 20 अक्टूबर 1940 को उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और कहा कि भक्तों की पुकार उन्हें बुला रही है और उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।

प्रशांति निलय
उन्होंने पुट्टपर्ती में 'प्रशांति निलयम ’ आश्रम की स्थापना की, जिसका उद्घाटन बाबा के 25वें जन्म दिन पर 1950 में उन्हीं के द्वारा किया गया। आज यह आश्रम, आध्यात्मिक ज्ञान-जागृति केंद्र के रूप में विकसित हो गया है। जहाँ भारत के ही नहीं विश्व भर से लाखों की संख्या में विभिन्न धर्मों व मतों को मानने वाले भक्तगण, अवतार श्री सत्यसाईं बाबा के दिव्य दर्शन प्राप्त करने के लिए आते थे। 

रहस्य और चमत्कार के बाबा 
बाबा के चमत्कारों के इतने अनूठे किस्से प्रचलित हैं कि अक्सर तथ्य, ‍विज्ञान और हाथों की कलाकारी के मद्देनजर पर उन पर संदेह प्रकट किए जाते रहे, लेकिन देश-विदेश में बसे अनेक साईं भक्तों से, उनके घरों में सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों तथा चित्रों से विभूति, कुमकुम, शहद, रोली, गुलाल निकलना, हाथों की छाप मिलना, अदृश्य होकर प्रसाद ग्रहण करना, मांगलिक कार्यों में आत्मिक उपस्थिति, पीले लिफाफे पर स्वास्तिक चिन्ह के साथ बाबा का आशीर्वाद मिलने जैसे सैकड़ों अनुभव सुने जा सकते हैं। 

बाबा स्वयं भक्तों के बीच विभूति बरसाने, शिवरात्रि पर सोने व पारद शिवलिंग अपने मुँह से निकालने, हाथों से अँगूठी या सोने की चैन आदि प्रकट ‍करने जैसे चमत्कार किया करते थे। यहाँ तक कि पिछले दिनों चाँद में बाबा का अक्स दिखाई देने की चर्चा भी जोरों पर रही। कहा जाता है कि बाबा अर्धनारीश्वर का रूप थे। साईं भक्तों के घरों में उनके पैरों के चित्र पूजे जाते हैं जिनमें एक पैर पुरुष व दूसरा नारी के समान दिखाई देता है। कहते हैं पैरों की असमान छवि ही बाबा की वेशभूषा के जमीन पर लहराने का कारण थी। 

श्री सत्य साईं के सिद्धां
तमाम चमत्कारों पर विश्वास ना भी करें तो भी बाबा को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के तौर पर ससम्मान स्वीकारा जा सकता है। उनके सिद्धांत भी सदैव राष्ट्र हित का ही पोषण करते रहे। उनका मानना था कि विभिन्न मतों (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि) को मानने वाले, अपने-अपने धर्म को मानते हुए, अच्छे मानव बनें। 

साईं मिशन को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि बच्चों को बचपन से ऐसा वातावरण उपलब्ध हो, जिसमें उनको अच्छे संस्कार मिलें और पाँच मानवीय मूल्यों (सत्य, धर्म, शान्ति, प्रेम और अहिंसा) को अपने चरित्र में ढालते हुए वे अच्छे नागरिक बन सकें। तभी बाल विकास कार्यक्रमों तथा साईं एजकेयर के अनुरूप, बच्चों में रूपांतरण (ट्रांसफारमेशन) होगा और उनके व्यवहार को देखकर, संपर्क में आने वाले बच्चों के जीवन में भी परिवर्तन होगा।

व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को माने पर परमनिष्ठा के साथ राष्ट्रधर्म का पालन करना चाहिए।
सदैव दूसरे धर्म का आदर करना चाहिए।
सदैव अपने देश का आदर करें, हमेशा उसके कानूनों का पालन करें।
परमात्मा एक है, पर उसके नाम अलग-अलग हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी में अच्छे व्यवहार और नैतिकता को कड़ाई से शामिल करना चाहिए।
बिना किसी उम्मीद के गरीबों, जरूरतमंदों और बीमारों की मदद करनी चाहिए।
सत्य का मूल्य, आध्यात्मिक प्रेम, अच्छे आचरण, शांति और अहिंसा का पालन और प्रसार करना चाहिए। 

अतुलनीय समाज सेवा 
बाबा के सेवा कार्यों की जितने मुक्त कंठ से प्रशंसा की जाए कम है। अपनी माँ ईश्वरम्मा के नाम से ट्रस्ट स्थापित करने के साथ ही उनके साईं यूथ इंडिया, साईं बाल विकास, इंटरनेशनल साईं ऑर्गनाइजेशन, साईं बुक्स एंड पब्लिकेशन डिविजन, व्हाइट फिल्ड हॉस्पिटल, सत्य साईं मेडिकल ट्रस्ट, देश भर में संचालित श्री सत्य साईं हायर सेकेंडरी स्कूल, सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग की तीन प्रमुख शाखाएँ प्रशांति निलयम, अनंतपूरम, वृंदावन हैं जिसके तहत कला, विज्ञान, ग‍‍णित, भाषा, एमबीए, टेक्नोलॉजी, पीएचडी, स्पोर्टस् व रिसर्च की महती सुविधाएँ हैं।

पूरे हिन्दूस्तान में मुफ्त ओपन हार्ट सर्जरी की व्यवस्था मात्र सत्य साईं बाबा के अस्पताल में हैं। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहाँ बाबा के सेवा कार्यों ने अपनी पहचान स्थापित न की हो। देश-विदेश के नामी गिरामी चिकित्सक बाबा के अस्पतालों में मुफ्त सेवाएँ देते हैं। बाबा के इन सामाजिक कार्यों की सूची अंतहीन है। उनके सामाजिक कल्याण कार्यों में महिलाएँ, बच्चियाँ युवा, ग्रामीण वर्ग, कमजोर आर्थिक वर्ग, अपंग, अनाथ, असहाय व बुजुर्गों के लिए अलग-अलग सेवा कार्य संपन्न किए जाते हैं। 

त्योहार-संस्कृति-परंपरा 
श्री सत्य साईं ने अपने जीवनकाल में भारत की संस्कृति, परंपरा और त्योहारों की मधुर श्रृंखला को अपने आध्यात्मिक रूप के साथ भी सुंदरता से कायम रखा। बाबा के आश्रम में हर पर्व, हर त्योहार, हर धर्म के उत्सव समान उत्साह और उल्लास से मनाए जाते थे। हर धर्म के आयोजित सांस्कृतिक महोत्सव में बाबा स्वयं शामिल होते थे। देश की हर जानी-मानी हस्ती बाबा के इन कार्यक्रमों में आमंत्रित अतिथि रही हैं। 

चमत्कारिक चुंबकीय व्यक्तित्
यह बाबा का चुंबकीय-चमत्कारिक व्यक्तित्व ही था कि उनके दर्शन के लिए लाखों की संख्या में एकत्र उनके भक्तगण एक से अनुशासन और एक से भाव के साथ एक ही स्थान पर दम साधे बैठे रहते लेकिन व्यवस्था का यह आलम कि परिंदा भी पर मारे तो हर शख्स को अहसास हो जाए। इतने सारे दिलों पर अपना वर्चस्व स्थापित करना भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। 

जब से बाबा की बीमारी मीडिया के माध्यम से सामने आई तब से लाखों की संख्या में भक्त वहाँ एकत्र होकर उनकी सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे थे। यहाँ तक कि वहाँ की सरकार, प्रशासन और पुलिस ने मुस्तैदी से बाबा की सेहत पर पल-पल नजर रखी। देश-विदेश के मीडियाकर्मी 28 मार्च 2011 से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अपना डेरा जमाए रहे। 

संगीन आरोपों का मकड़जाल 
सत्य साईं बाबा जब तक जीवित रहे आरोपों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। कुछ लोग उन्हें शिर्डी के साईं बाबा का अवतार नहीं मानते तो कुछ के लिए उनकी तांत्रिक क्रियाएँ शक के घेरे में रही, लेकिन इन सबसे न बाबा के आध्यात्मिक वर्चस्व में कोई कमी आई ना भक्तों की प्रबल आस्था में कोई परिवर्तन हुआ। 

सत्य साईं बाबा को देश के कई नामी जादूगरों ने भी चुनौती पेश की थी। मशहूर जादूगर पीसी सरकार ने तो उनके सामने ही उन्हीं की तरह हवा से विभूति और सोने की जंजीर निकाल कर दिखा दी थी। हालाँकि भक्तगण इन आरोपों को सिरे से खारिज करते रहे हैं। स्वयं बाबा ने इस मामले में कभी चुप्पी नहीं तोड़ी और गरिमामयी विनम्र संत बने रहे। 

श्रद्धांजलि... 
यह वक्त दुनिया भर में फैले उनके अनुयायियों के लिए वज्रपात के समान है, लेकिन सही मायनों में संपूर्ण भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी उपस्थिति मात्र से लाखों लोगों की साँसे थम जाए, जिसकी वाणी से एक अनंत खामोशी छा जाए और जिसके दर्शन मात्र से लोग अपना जीवन ही सार्थक समझ लें... जब उसकी ही साँसे थम जाए, जब वह स्वयं एक चिर खामोशी ओढ़ ले और जब वह अपने समूचे दिव्य व्यक्तित्व के साथ दर्शन को ही उपलब्ध ना हो तो एक भक्त के मन के भीतर कितना कुछ टूटता, गिरता, बिखरता और चरमराता है, यह समझना बेहद मुश्किल है।

हम भक्त न हो तब भी एक अत्यंत प्रभावशाली प्रबुद्ध समाजसेवी शख्सियत के इस धरा से चले जाने पर स्तब्ध हैं। एक साथ इतनी भारी संख्या में अनुयायियों-भक्तों और प्रशंसकों का एकमात्र नेतृत्व चला गया यह यकीनन घोर पीड़ा और मौन श्रद्धांजलि व्यक्त करने का समय है. (साभार.... स्मृति जोशी    

Tuesday, April 19, 2011

तेजी से बढ़ रहा है मीडिया क्षेत्र

 
 
देश में वर्तमान में राजनीतिक स्थिरता है साथ ही वर्तमान का आर्थिक परिदृश्य गत वर्ष की मंदी से काफी अच्छा है। इसे देखते हुए कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने देश के विभिन्न सेक्टर्स में निवेश की योजना बनाई है। वर्तमान में भारतीय ब्रॉन्ड्स की काफी ज्यादा माँग है। इसके अलावा विदेशी ब्रॉन्ड भारत आ रहे हैं। इसका सीधा-सा असर मीडिया क्षेत्र पर भी पड़ रहा है और वह तेजी से बढ़ रहा है।

माँग बढ़ रही है
मीडिया का क्षेत्र काफी तेजी से प्रगति कर रहा है जिस प्रकार से सरकार ने आर्थिक सुधारों के लिए कदम उठाए हैं उसका असर मीडिया क्षेत्र पर भी पड़ा है। मीडिया क्षेत्र ने स्वयं भी पहल कर हालात में सुधार के लिए प्रयत्न किए हैं जिसका असर अब साफ नजर आ रहा है और अब केवल शहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि ग्रामीण भारत की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है।

इस क्षेत्र में खूब नौकरियाँ होंगी
गत तीन-चार वर्षों में यह देखने में आया है कि देशभर में कई मीडिया संस्थानों ने आकार लिया है तथा तरह-तरह के मीडिया पाठ्यक्रम चलाए हैं। यह एक अच्छा संदेश है। इस क्षेत्र में अच्छे लोगों की माँग काफी ज्यादा है तथा अब यह क्षेत्र कुछ खास लोगों के लिए नहीं रहा है।

भारत में अभी यह क्षेत्र शैशव अवस्था में ही है और जिस प्रकार से संप्रेषण के तरीके जैसे आउटडोर, डिजीटल, न्यू मीडिया एसएमएस के क्षेत्र में विकास हो रहा है, इस क्षेत्र में लोगों की माँग बढ़ रही है। अगले कुछ समय में इस क्षेत्र में खूब नौकरियाँ जरूर होंगी।

आज युवा जानता है वह क्या करना चाहता है
इंटरनेट के कारण अब विश्व काफी छोटा हो गया है तथा देश का युवा अब पहले से कहीं अधिक स्मार्ट हो गया है। वह टेकसेवी है, वह गैजेट्स, फैशन के बारे में भी ज्ञान रखता है साथ ही राजनीति व विज्ञापन जैसे क्षेत्र की जानकारी भी उसे है। करियर चुनने के लिए वह अब अपने परिवार पर निर्भर नहीं है बल्कि उसे इस बात की संपूर्ण जानकारी है कि अगर उसे बिजनेस आरंभ करना है तो फाइनेंस, वर्कफोर्स, निवेश, सेल्स आदि के बारे में वह क्या करे। वह शिक्षा पर भी ध्यान देता है और अनुभव प्राप्त कर ही कुछ नया करने की सोचता है .
(संकलित)