आज से ठीक एक साल पहले आईआईएमसी में हमारा सत्र शुरू हुआ था। मैं ढेर सारे नए दोस्तों से मिलकर काफी खुश था। यह खुशी यहां हॉस्टल नहीं होने की दिक्कतों पर भारी पड़ा। जब यहां के लिए फॉर्म भर रहा था तब पता था कि छात्रों के लिए हॉस्टल नहीं होगा। सत्र के दौरान कई बार शिगूफे सुने कि अगले बैच को ये सुविधा मिलेगी। इस बात की खुशी ने भी शायद अपनी सुविधा के लिए संघर्ष टालने में भूमिका निभाई।
दिल्ली आया था तो रेल मंत्रालय के गेस्ट हाउस, अपने भाई अभिषेक भारद्वाज के मॉडल टाउन फेज तीन के फ्लैट और फिर दो सिनियर पत्रकारों के साथ पहाड़गंज में टूकड़ों में रिहाईश की। मेट्रो तब केंद्रीय सचिवालय तक ही था। 15 अगस्त 2010 को यह हौजखास तक बढ़ा। कॉमनवेल्थ खेल में इंटर्नशिप के बाद पहले सेमेस्टर की परीक्षा को ध्यान में रखते हुए आईआईएमसी के पास किशनगढ़ शिफ्ट हुआ। मोटरसाइकिल से पढ़ने आते-जाते वक्त कई बार पुलिस को चालान देना पड़ता था। कारण हमेशा ट्रिपल लोड होता था।
सर्दियों में सुबह में होने वाला चर्चा सत्र छूट ही जाता था। बहुत कोफ्त होती थी। लाइब्रेरी-लैब में बैठे दोस्तों को ठिकाने के लिए जल्दी निकलना होता था। उन सबसे कई जरूरी बातें अधूरी रह जाने का मलाल आज भी है।
भोजन आदि के लिए प्रायः पड़ोस के एनआईआई, जेएनयू, सेकुलर भवन, बेरसराय या कटवारिया सराय जाना होता था। अपने कमरे पर हमेशा देर से पहुंच पाते थे। अपना तो मानसिक अनुकूलन बना दिया गया था। जीवन में कभी हॉस्टल में नहीं रहा। इस सुख का कोई अनुभव नहीं। हाई स्कूल के दौरान शिक्षाविद कृष्ण कुमार के साक्षात्कार में छात्र जीवन के विकास में हॉस्टल की तरफदारी पढ़ चुका था। यह छात्रों का हक भी है।
आईआईएमसी के सिनियर और यहां हॉस्टल के लिए संघर्ष कर रहे दोस्तों ने इस ओर फिर से ध्यान दिलाया। तो सिक्वेंस में सोचना पड़ा। सुना है कि अगले बैच को यह सुविधा मिलेगी। यह बात सुनने-सुनाने तक ही ना रह जाए। इसलिए हम साथ-साथ हैं। 26 जुलाई, 2013
दिल्ली आया था तो रेल मंत्रालय के गेस्ट हाउस, अपने भाई अभिषेक भारद्वाज के मॉडल टाउन फेज तीन के फ्लैट और फिर दो सिनियर पत्रकारों के साथ पहाड़गंज में टूकड़ों में रिहाईश की। मेट्रो तब केंद्रीय सचिवालय तक ही था। 15 अगस्त 2010 को यह हौजखास तक बढ़ा। कॉमनवेल्थ खेल में इंटर्नशिप के बाद पहले सेमेस्टर की परीक्षा को ध्यान में रखते हुए आईआईएमसी के पास किशनगढ़ शिफ्ट हुआ। मोटरसाइकिल से पढ़ने आते-जाते वक्त कई बार पुलिस को चालान देना पड़ता था। कारण हमेशा ट्रिपल लोड होता था।
सर्दियों में सुबह में होने वाला चर्चा सत्र छूट ही जाता था। बहुत कोफ्त होती थी। लाइब्रेरी-लैब में बैठे दोस्तों को ठिकाने के लिए जल्दी निकलना होता था। उन सबसे कई जरूरी बातें अधूरी रह जाने का मलाल आज भी है।
आईआईएमसी के सिनियर और यहां हॉस्टल के लिए संघर्ष कर रहे दोस्तों ने इस ओर फिर से ध्यान दिलाया। तो सिक्वेंस में सोचना पड़ा। सुना है कि अगले बैच को यह सुविधा मिलेगी। यह बात सुनने-सुनाने तक ही ना रह जाए। इसलिए हम साथ-साथ हैं। 26 जुलाई, 2013