Saturday, June 18, 2011

मेरे प्रिय १० सदाबहार गीत ---


क्रम          मुखड़ा                                                         फिल्म    वर्ष       गीतकार      संगीत             गायक
१. इतनी शक्ति हमें देना दाता.                                        अंकुश,    १९८६     अभिलास     कुलदीप सिंह      पूर्णिमा
२. ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी .....      --         १९६२    कवि  प्रदीप   चितलकर रामचंद्र   लता मंगेशकर
३. मैं कोई ऐसा  गीत गाऊं कि आरजू जगाऊ......             यस बॉस,   १९९७   जावेद अख्तर    जतिन-ललित     अभिजीत-अलका
४. एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल......                    धरम करम,  १९७५   मजरुह          आर डी बर्मन        मुकेश
५. आ भी जा  आ भी जा ऐ सुबह आ भी जा....               सुर,           २००२    निदा फाजली    एम् एम्  करीम    लकी अली
६. आवारा हूँ या गर्दिश में हूँ आसमान  का तारा हूँ ....    आवारा,      १९५१    इन्फो एन ऐ     शंकर-जयकिशन    मुकेश
७.कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे......                  पूरब और पश्चिम,    १९७१    इंदीवर         कल्याणजी-आनंदजी    मुकेश
८. छाप  तिलक सब छिनी मोसे नैना मिलायके अमन की आशाएं (एल्बम), २०१०  अमीर खुसरो,  कैलाश  खेर    कैलाश  खेर
९.किसीकी मुस्कुराहटों पे हो निसार,...                      अनाड़ी,         १९५९      शैलेन्द्र         शंकर-जयकिशन      मुकेश
१०. जय हो...........                                  स्लम डोग मिलेनिअर,    २००९   गुलज़ार        ऐ आर रहमान       ऐ आर रहमान

                                                                                                              

Saturday, May 21, 2011

समय, शब्द और स्व प्रबंधन का अभ्यास



नमस्ते!  आप इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं. मतलब आप अपनी तैयारी  के प्रति गंभीर हैं. आपने अबतक जो पढ़ा है उसका रिविजन कर लें. और हाँ , आप लिखने का अभ्यास पहले से कर ही रहे होंगे.क्या आपने अपना लिखा हुआ किसी हुनरमंद या वरिष्ठ पत्रकार से दिखवाया? आप इसे किसी शिक्षक  से भी दिखा सकते हैं . उनके निर्देशों को अमल में लाना आपकी लेखन क्षमता को विकसित करेगा. रोजाना अख़बार पढ़कर कैसा लगता है? इस विषय पर सोचना और उसको लिखने की कोशिश करना भी एक अच्छा अभ्यास हो सकता है.
बीते हुए पांच  साल के प्रश्नपत्र आपने देखे होंगे. इस से आपको एक अंदाज़ा मिला होगा. इस ब्लॉग के अन्य लेख आपको और अधिक शार्प कर चूका होगा. क्या आपने अपनी परीक्षा खुद ली है? प्रवेश परीक्षा के आखिरी दिनों में  यह कोशिश हमें बहुत मजबूत करती है.
हाल के दिनों में मशहूर हुए प्रमुख हस्तियों की जानकारी,घटनाक्रम के साथ ही आर्थिक गतिविधियाँ, खेल जगत और राजनितिक उतार चढ़ाव आदि परीक्षा के लिहाज से हमसे अटेंशन की उम्मीद रखता है. पत्रकार बनने की इच्छा है तो  मीडिया जगत पर नज़र रख ही रहे होंगे. इस विषय में कुछ न्यूज़ पोर्टल आपकी जरुरी मदद कर सकता है. 'ई ' या वेब जर्नालिस्म के दौर में  इससे जुड़े हुए सवाल होने की पूरी गुंजाईश है. हाँ , कंप्यूटर और इंटरनेट के बारे जानकर आप परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.
अनुवाद का एक सवाल और वह भी बहुत स्कोरिंग होता है.इसके लिए लगातार  अभ्यास से बढ़कर दूसरा और कोई उपाय नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय  घटनाचक्र , कड़ी देशों में हो रहे जनांदोलन , अमेरिका-भारत-पकिस्तान के सम्बन्ध, विकिलीक्स के खुलासे , नीरा राडिया प्रकरण, निजता का मामला आसी मुद्दे के साथ ही विनायक सेन या अयोध्या फैसले को लेकर न्यायलय से जुडी हुयी बैटन पर भी एक सरसरी निगाह डाल लेनी चाहिए. इसके अलावे खुद से भी कई मुद्दे तलाश कर उसपर लिखने की तैयारी होनी चाहिए.
समय, शब्द  और स्व प्रबंधन आपको हर लिखित परीक्षा में कामयाब बना सकता है. भाषा,शैली, शब्द ज्ञान, सामान्य जागरूकता, लेखन कौशल इन सबकी जाँच परीक्षा में आमतौर पर की जाती है. आई आई एम् सी के सवाल आपकी यादाश्त और समझदारी दोनों के हिसाब से तय किये जाते हैं. आपका संतुलित और स्पष्ट लिखित जबाव उनको( जांच करने वाले को) प्रभावित करता है और आपको सफल.
सुना ही होगा आपने " practice makes parfect" तैयारी करते रहने से आत्मविश्वास बनता और बढ़ता है. यह हर जगह बना रहना चाहिए. इसमें एक एक बात और जोड़ लीजिये- "constant practice often exels even talent."
कहने का मतलब है की आखिरी दिनों में गैरजरुरी चीजों से बचना भी बहुत जरुरी है. मुद्रित अक्षरों के प्रति प्रेम ने आपको यहाँ तक पहुँचाया है. यही आपकी परीक्षा और आगामी पत्रकारीय जीवन में भी आपको सफल करेगा. प्रसन्नचित्त होलर पढना-लिखना जारी रखें, जमकर भोजन करें, नींद लें और इत्मिनान से परीक्षा देकर आयें.
साक्षात्कार के बारे में बातें आगे होगी.............
आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं.........
                     केशव कुमार 
iimccounselling.blogspot.com  से साभार

Sunday, April 24, 2011

अध्यात्म , चमत्कार और श्रद्धा के महानायक सत्य साईं बाबा का महा निर्वाण

 

यह खबर करोड़ों साईं अनुयायियों का दिल तोड़ देने वाली है। जो साईं भक्त नहीं है वे भी इस खबर से उदास हैं क्योंकि एक शख्स, जो जीवन भर रहस्यों से घिरा रहा, एक शख्स जो चमत्कारों से चौंकाता रहा, एक शख्स, जिसके सेवा कार्यों का देश-विदेश में विशाल साम्राज्य स्थापित है। ऐसे श्री सत्य साईं बाबा अब इस दुनिया में नहीं रहे। रविवार की सुबह करोड़ों लोगों के लिए ईश्वर का साक्षात अवतार रहे बाबा को तमाम चिकित्सकीय संघर्षों के बावजूद अंतत: नहीं बचाया जा सका। 


लगभग 40 हजार करोड़ की (घोषित) संपत्ति के मालिक श्री सत्य साईं बाबा का नाम दुनिया के किसी भी कोने में अपरिचित नहीं है। आज विश्व के 178 देशों में सत्य साईं केंद्र स्थापित हैं। 

भारत में सभी प्रदेशों के लगभग सभी शहरों व गाँवों तक में साईं संगठन हैं, जहाँ साईं भक्त श्री सत्य साईं बाबा के आध्यात्मिक नियमों का पालन करते हुए बाबा के पवित्र संदेशों का प्रसार कर रहे हैं। श्री सत्य साईं बाबा के पूरे विश्व भर में करोड़ों की संख्या में अनुयायी हैं जिनमें राजनीतिज्ञ, बड़े औद्योगिक घराने, कलाकार, बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं। 

बचपन के 'सत्य' 
श्री सत्य साईं का जन्म 23 नवंबर 1926 सोमवार कार्तिक मास, अक्षय वर्ष आद्रा नक्षत्र में, पूर्णिमा के बाद तृतीय तिथि ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। वे आंध्रप्रदेश के जिले अनंतपुर के अति दूरस्थ अल्पविकसित गाँव पुट्टपर्ती के श्री पेदू वेंकप्पाराजू एवं माँ ईश्वराम्मा की आठवीं संतान थे। कहा जाता है, जिस क्षण नवजात श्री सत्य ने जन्म लिया, उस समय घर में रखे सभी वाद्ययंत्र स्वत: बजने लगे और एक रहस्यमय नाग बिस्तर के नीचे से फन निकालकर छाया करता पाया गया।

सत्यनारायण भगवान की पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात शिशु का जन्म हुआ था, इसलिए शिशु का नाम सत्यनारायण रखा गया। श्री सत्यनारायण (सत्या) की प्रारंभिक शिक्षा पुट्टपर्ती के प्राइमरी स्कूल में हुई थी। आठ वर्ष की अल्प आयु से ही सत्या ने सुंदर भजनों की रचना शुरू की। वे बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। चित्रावती के किनारे ऊँचे टीले पर स्थित इमली के वृक्ष (कल्पवृक्ष) से साथियों की माँग पर, विभिन्न प्रकार के फल व मिठाइयाँ सृजित करते थे। इमली का वह वृक्ष आज भी मौजूद है। इन प्रसंगों की सत्यता के प्रमाण उपलब्ध हैं बावजूद इसके संदेह और सच में सदैव द्वंद्व कायम रहा। 

मैं साईं हूँ.... 
23 मई 1940 को 14 वर्ष की आयु में 'सत्या’(बाबा) ने अपने अवतार होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि 'मैं शिवशक्ति स्वरूप, शिरडी साईं का अवतार हूँ’। यह कह कर उन्होंने मुट्ठी भर चमेली के फूलों को हवा में उछाल दिया, जो धरती पर गिरते ही तेलुगू भाषा में 'साईंबाबा’ बन गए। 20 अक्टूबर 1940 को उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और कहा कि भक्तों की पुकार उन्हें बुला रही है और उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।

प्रशांति निलय
उन्होंने पुट्टपर्ती में 'प्रशांति निलयम ’ आश्रम की स्थापना की, जिसका उद्घाटन बाबा के 25वें जन्म दिन पर 1950 में उन्हीं के द्वारा किया गया। आज यह आश्रम, आध्यात्मिक ज्ञान-जागृति केंद्र के रूप में विकसित हो गया है। जहाँ भारत के ही नहीं विश्व भर से लाखों की संख्या में विभिन्न धर्मों व मतों को मानने वाले भक्तगण, अवतार श्री सत्यसाईं बाबा के दिव्य दर्शन प्राप्त करने के लिए आते थे। 

रहस्य और चमत्कार के बाबा 
बाबा के चमत्कारों के इतने अनूठे किस्से प्रचलित हैं कि अक्सर तथ्य, ‍विज्ञान और हाथों की कलाकारी के मद्देनजर पर उन पर संदेह प्रकट किए जाते रहे, लेकिन देश-विदेश में बसे अनेक साईं भक्तों से, उनके घरों में सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों तथा चित्रों से विभूति, कुमकुम, शहद, रोली, गुलाल निकलना, हाथों की छाप मिलना, अदृश्य होकर प्रसाद ग्रहण करना, मांगलिक कार्यों में आत्मिक उपस्थिति, पीले लिफाफे पर स्वास्तिक चिन्ह के साथ बाबा का आशीर्वाद मिलने जैसे सैकड़ों अनुभव सुने जा सकते हैं। 

बाबा स्वयं भक्तों के बीच विभूति बरसाने, शिवरात्रि पर सोने व पारद शिवलिंग अपने मुँह से निकालने, हाथों से अँगूठी या सोने की चैन आदि प्रकट ‍करने जैसे चमत्कार किया करते थे। यहाँ तक कि पिछले दिनों चाँद में बाबा का अक्स दिखाई देने की चर्चा भी जोरों पर रही। कहा जाता है कि बाबा अर्धनारीश्वर का रूप थे। साईं भक्तों के घरों में उनके पैरों के चित्र पूजे जाते हैं जिनमें एक पैर पुरुष व दूसरा नारी के समान दिखाई देता है। कहते हैं पैरों की असमान छवि ही बाबा की वेशभूषा के जमीन पर लहराने का कारण थी। 

श्री सत्य साईं के सिद्धां
तमाम चमत्कारों पर विश्वास ना भी करें तो भी बाबा को राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के तौर पर ससम्मान स्वीकारा जा सकता है। उनके सिद्धांत भी सदैव राष्ट्र हित का ही पोषण करते रहे। उनका मानना था कि विभिन्न मतों (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि) को मानने वाले, अपने-अपने धर्म को मानते हुए, अच्छे मानव बनें। 

साईं मिशन को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि बच्चों को बचपन से ऐसा वातावरण उपलब्ध हो, जिसमें उनको अच्छे संस्कार मिलें और पाँच मानवीय मूल्यों (सत्य, धर्म, शान्ति, प्रेम और अहिंसा) को अपने चरित्र में ढालते हुए वे अच्छे नागरिक बन सकें। तभी बाल विकास कार्यक्रमों तथा साईं एजकेयर के अनुरूप, बच्चों में रूपांतरण (ट्रांसफारमेशन) होगा और उनके व्यवहार को देखकर, संपर्क में आने वाले बच्चों के जीवन में भी परिवर्तन होगा।

व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को माने पर परमनिष्ठा के साथ राष्ट्रधर्म का पालन करना चाहिए।
सदैव दूसरे धर्म का आदर करना चाहिए।
सदैव अपने देश का आदर करें, हमेशा उसके कानूनों का पालन करें।
परमात्मा एक है, पर उसके नाम अलग-अलग हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी में अच्छे व्यवहार और नैतिकता को कड़ाई से शामिल करना चाहिए।
बिना किसी उम्मीद के गरीबों, जरूरतमंदों और बीमारों की मदद करनी चाहिए।
सत्य का मूल्य, आध्यात्मिक प्रेम, अच्छे आचरण, शांति और अहिंसा का पालन और प्रसार करना चाहिए। 

अतुलनीय समाज सेवा 
बाबा के सेवा कार्यों की जितने मुक्त कंठ से प्रशंसा की जाए कम है। अपनी माँ ईश्वरम्मा के नाम से ट्रस्ट स्थापित करने के साथ ही उनके साईं यूथ इंडिया, साईं बाल विकास, इंटरनेशनल साईं ऑर्गनाइजेशन, साईं बुक्स एंड पब्लिकेशन डिविजन, व्हाइट फिल्ड हॉस्पिटल, सत्य साईं मेडिकल ट्रस्ट, देश भर में संचालित श्री सत्य साईं हायर सेकेंडरी स्कूल, सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग की तीन प्रमुख शाखाएँ प्रशांति निलयम, अनंतपूरम, वृंदावन हैं जिसके तहत कला, विज्ञान, ग‍‍णित, भाषा, एमबीए, टेक्नोलॉजी, पीएचडी, स्पोर्टस् व रिसर्च की महती सुविधाएँ हैं।

पूरे हिन्दूस्तान में मुफ्त ओपन हार्ट सर्जरी की व्यवस्था मात्र सत्य साईं बाबा के अस्पताल में हैं। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहाँ बाबा के सेवा कार्यों ने अपनी पहचान स्थापित न की हो। देश-विदेश के नामी गिरामी चिकित्सक बाबा के अस्पतालों में मुफ्त सेवाएँ देते हैं। बाबा के इन सामाजिक कार्यों की सूची अंतहीन है। उनके सामाजिक कल्याण कार्यों में महिलाएँ, बच्चियाँ युवा, ग्रामीण वर्ग, कमजोर आर्थिक वर्ग, अपंग, अनाथ, असहाय व बुजुर्गों के लिए अलग-अलग सेवा कार्य संपन्न किए जाते हैं। 

त्योहार-संस्कृति-परंपरा 
श्री सत्य साईं ने अपने जीवनकाल में भारत की संस्कृति, परंपरा और त्योहारों की मधुर श्रृंखला को अपने आध्यात्मिक रूप के साथ भी सुंदरता से कायम रखा। बाबा के आश्रम में हर पर्व, हर त्योहार, हर धर्म के उत्सव समान उत्साह और उल्लास से मनाए जाते थे। हर धर्म के आयोजित सांस्कृतिक महोत्सव में बाबा स्वयं शामिल होते थे। देश की हर जानी-मानी हस्ती बाबा के इन कार्यक्रमों में आमंत्रित अतिथि रही हैं। 

चमत्कारिक चुंबकीय व्यक्तित्
यह बाबा का चुंबकीय-चमत्कारिक व्यक्तित्व ही था कि उनके दर्शन के लिए लाखों की संख्या में एकत्र उनके भक्तगण एक से अनुशासन और एक से भाव के साथ एक ही स्थान पर दम साधे बैठे रहते लेकिन व्यवस्था का यह आलम कि परिंदा भी पर मारे तो हर शख्स को अहसास हो जाए। इतने सारे दिलों पर अपना वर्चस्व स्थापित करना भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। 

जब से बाबा की बीमारी मीडिया के माध्यम से सामने आई तब से लाखों की संख्या में भक्त वहाँ एकत्र होकर उनकी सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे थे। यहाँ तक कि वहाँ की सरकार, प्रशासन और पुलिस ने मुस्तैदी से बाबा की सेहत पर पल-पल नजर रखी। देश-विदेश के मीडियाकर्मी 28 मार्च 2011 से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अपना डेरा जमाए रहे। 

संगीन आरोपों का मकड़जाल 
सत्य साईं बाबा जब तक जीवित रहे आरोपों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। कुछ लोग उन्हें शिर्डी के साईं बाबा का अवतार नहीं मानते तो कुछ के लिए उनकी तांत्रिक क्रियाएँ शक के घेरे में रही, लेकिन इन सबसे न बाबा के आध्यात्मिक वर्चस्व में कोई कमी आई ना भक्तों की प्रबल आस्था में कोई परिवर्तन हुआ। 

सत्य साईं बाबा को देश के कई नामी जादूगरों ने भी चुनौती पेश की थी। मशहूर जादूगर पीसी सरकार ने तो उनके सामने ही उन्हीं की तरह हवा से विभूति और सोने की जंजीर निकाल कर दिखा दी थी। हालाँकि भक्तगण इन आरोपों को सिरे से खारिज करते रहे हैं। स्वयं बाबा ने इस मामले में कभी चुप्पी नहीं तोड़ी और गरिमामयी विनम्र संत बने रहे। 

श्रद्धांजलि... 
यह वक्त दुनिया भर में फैले उनके अनुयायियों के लिए वज्रपात के समान है, लेकिन सही मायनों में संपूर्ण भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी उपस्थिति मात्र से लाखों लोगों की साँसे थम जाए, जिसकी वाणी से एक अनंत खामोशी छा जाए और जिसके दर्शन मात्र से लोग अपना जीवन ही सार्थक समझ लें... जब उसकी ही साँसे थम जाए, जब वह स्वयं एक चिर खामोशी ओढ़ ले और जब वह अपने समूचे दिव्य व्यक्तित्व के साथ दर्शन को ही उपलब्ध ना हो तो एक भक्त के मन के भीतर कितना कुछ टूटता, गिरता, बिखरता और चरमराता है, यह समझना बेहद मुश्किल है।

हम भक्त न हो तब भी एक अत्यंत प्रभावशाली प्रबुद्ध समाजसेवी शख्सियत के इस धरा से चले जाने पर स्तब्ध हैं। एक साथ इतनी भारी संख्या में अनुयायियों-भक्तों और प्रशंसकों का एकमात्र नेतृत्व चला गया यह यकीनन घोर पीड़ा और मौन श्रद्धांजलि व्यक्त करने का समय है. (साभार.... स्मृति जोशी    

Tuesday, April 19, 2011

तेजी से बढ़ रहा है मीडिया क्षेत्र

 
 
देश में वर्तमान में राजनीतिक स्थिरता है साथ ही वर्तमान का आर्थिक परिदृश्य गत वर्ष की मंदी से काफी अच्छा है। इसे देखते हुए कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने देश के विभिन्न सेक्टर्स में निवेश की योजना बनाई है। वर्तमान में भारतीय ब्रॉन्ड्स की काफी ज्यादा माँग है। इसके अलावा विदेशी ब्रॉन्ड भारत आ रहे हैं। इसका सीधा-सा असर मीडिया क्षेत्र पर भी पड़ रहा है और वह तेजी से बढ़ रहा है।

माँग बढ़ रही है
मीडिया का क्षेत्र काफी तेजी से प्रगति कर रहा है जिस प्रकार से सरकार ने आर्थिक सुधारों के लिए कदम उठाए हैं उसका असर मीडिया क्षेत्र पर भी पड़ा है। मीडिया क्षेत्र ने स्वयं भी पहल कर हालात में सुधार के लिए प्रयत्न किए हैं जिसका असर अब साफ नजर आ रहा है और अब केवल शहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि ग्रामीण भारत की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है।

इस क्षेत्र में खूब नौकरियाँ होंगी
गत तीन-चार वर्षों में यह देखने में आया है कि देशभर में कई मीडिया संस्थानों ने आकार लिया है तथा तरह-तरह के मीडिया पाठ्यक्रम चलाए हैं। यह एक अच्छा संदेश है। इस क्षेत्र में अच्छे लोगों की माँग काफी ज्यादा है तथा अब यह क्षेत्र कुछ खास लोगों के लिए नहीं रहा है।

भारत में अभी यह क्षेत्र शैशव अवस्था में ही है और जिस प्रकार से संप्रेषण के तरीके जैसे आउटडोर, डिजीटल, न्यू मीडिया एसएमएस के क्षेत्र में विकास हो रहा है, इस क्षेत्र में लोगों की माँग बढ़ रही है। अगले कुछ समय में इस क्षेत्र में खूब नौकरियाँ जरूर होंगी।

आज युवा जानता है वह क्या करना चाहता है
इंटरनेट के कारण अब विश्व काफी छोटा हो गया है तथा देश का युवा अब पहले से कहीं अधिक स्मार्ट हो गया है। वह टेकसेवी है, वह गैजेट्स, फैशन के बारे में भी ज्ञान रखता है साथ ही राजनीति व विज्ञापन जैसे क्षेत्र की जानकारी भी उसे है। करियर चुनने के लिए वह अब अपने परिवार पर निर्भर नहीं है बल्कि उसे इस बात की संपूर्ण जानकारी है कि अगर उसे बिजनेस आरंभ करना है तो फाइनेंस, वर्कफोर्स, निवेश, सेल्स आदि के बारे में वह क्या करे। वह शिक्षा पर भी ध्यान देता है और अनुभव प्राप्त कर ही कुछ नया करने की सोचता है .
(संकलित)

समय- प्रबंधन की कला

 आने वाले दो-तीन महीनों में कई प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाएँ होने वाली हैं जैसे मई में सीबीएसई-एआईपीएमटी (मेडिसिन) की प्रमुख परीक्षा, एआई ईईई, मैट (मैनेजमेंट), आईआईएमसी (जर्नलिज्म), जून में यूपीएससी (सिविल सेवा) परीक्षा आदि। ये परीक्षाएँ न सिर्फ विद्यार्थियों से अथक परिश्रम की दरकार रखती हैं बल्कि समय प्रबंधन की भी माँग करती हैं। क्योंकि 80 प्रतिशत दिशाहीन प्रयास से बमुश्किल 20 प्रतिशत परिणाम ही आता है इसलिए अभी से विद्यार्थियों को अपनी कमर कस लेनी चाहिए।

प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी जितनी जल्दी शुरू की जाए, उतना अच्छा है। सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा माने जाने वाली आईआईटी-जेईई की तैयारी तो बच्चे नौवीं कक्षा से ही शुरू कर देते हैं। वहीं मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं, सीए सीपीटी और राष्ट्रीय लॉ प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी भी विद्यार्थी 11वीं कक्षा के दौरान ही शुरू कर देते हैं।

अगर बात करें बीबीए, होटल मैनेजमेंट, मास कम्यूनिकेशन और ऐसी ही कुछ अन्य प्रवेश परीक्षाओं की तो ये आमतौर पर एप्टीट्यूड आधारित प्रश्न होते हैं जिसके लिए दसवीं कक्षा तक के विषयों की तैयारी बहुत रहती है। ये प्रवेश परीक्षाएँ किसी एक खास विषय पर आधारित नहीं होती इसलिए बोर्ड परीक्षा देने के दौरान भी विद्यार्थी इनकी तैयारी कर सकते हैं।

 
पर इन दोनों महत्वपूर्ण परीक्षाओं की तैयारी एक साथ करना विद्यार्थियों के लिए मुश्किल हो सकता है इसलिए उचित मार्गदर्शन ही आपको इसमें सफलता दिला सकता है। यही वजह है कि अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की ओर बच्चों का रुझान बढ़ा है। यहाँ सही मार्गदर्शन पाकर प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी अच्छे से की जा सकती है और विद्यार्थियों की समय और ऊर्जा का सही तरह से प्रयोग भी हो पाता है।

बेशक इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए मेहनत तो आप ही को करनी है पर एक अच्छा कोचिंग इंस्टीट्यूट आपकी कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए रोजाना अभ्यास करवाता है और आपकी सभी शंकाओं को तुरंत हल कर आपकी प्रोगेस पर पैनी नजर रखता है।

प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए जो मैटर ये कोचिंग इंस्टीट्यूट्स विद्यार्थियों को देते हैं वो आपका बहुत-सा कीमती समय बचा लेता है और आप अपना पूरा फोकस प्रवेश परीक्षा की तैयारी पर दे सकते हैं। प्रवेश परीक्षाओं को पास करने के लिए आपको सतत अभ्यास की जरूरत होती है।

प्रवेश परीक्षा के पैटर्न के अनुसार आप अपनी लिखित तैयारी कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है सही कार्यनीति बनाने की। बोर्ड परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं में जमीन आसमान का अंतर है। यहाँ आपको प्रश्नों को छोड़ना आना चाहिए और यह पता होना चाहिए कि आपकी किन विषयों पर पकड़ नहीं है। इसके लिए जरूरत है सही अभ्यास, सही समय प्रबंधन की और ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की।