Wednesday, November 10, 2010

अक्तू.३० से नव. ०८ तक -
१ वोट , १ गंगा स्नान, १ घंटा इंटरनेट  
२ रेडिओ कार्यक्रम , २ स्थानीय सेमिनार
३ किताब पढ़े,  ३ खुशखबरी मिली
४ टीवी कार्यक्रम, ४ साल में पहली बार इतने दिन घर पर रहे
५ जिले में घूमे, ५ प्रमुख धार्मिक गुरुओ से मिले
६ रिश्तेदारियो में गए, ६०० किमी. मोटरसाइकिल चलायी
७ घंटे फोन पर बातें
८ न्यूज़ चैनल के दफ्तर जाकर मिले
९ बड़े राजनेताओ से मिले बातें  की
१० अख़बार के दफ्तर गए, सिखा.
१४ नए पत्रकार दोस्त बनाये
१५ विधानसभा में लोगो से मिला
३० से अधिक प्रमुख दलों  के उम्मीदवारों से मिला
४० परिवारों में जलपान
४५ चिट्ठियों का जवाब लिखा
पहले से तय १९० लोगों से भेंट
सोना कम और व्यस्त अधिक रहा .

Friday, October 1, 2010

मेरे कई दोस्त इन दिनों मुझसे प्यार की बाते करते हैं , अनुभवों की कमी के कारण मैं उन्हें कुछ प्रमाणिक बता नहीं पाता. ऐसे प्यार में पड़े प्यारे दोस्तों को समर्पित एक रचना जिसकी आत्मा आपको छुएगी.

कभी आप मौन हो जाएँ, कभी बोल खो जाएँ, जब अपने आप की खबर ही न रहे, खुद का वजूद किसी और में घुलता जाए। सारी बातें मन ही मन में चलती रहें। न तुम कुछ कहो, न मैं कुछ कहूँ। ऐसा ही कुछ-कुछ होता है जब प्रेम होता है। प्यार का पहला एहसास जागता है तो कुछ-कुछ नहीं 'बहुत कुछ' होता है।


लेकिन कभी-कभी यह समझने में बड़ी कठिनाई होती है कि ये प्यार ही है या और कुछ। पहला-पहला प्यार हो तो कुछ समझ नहीं आता है कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है ऐसा? किसी का अच्छा लगना और फिर एक ही मुलाकात में पूरी जिंदगी बन जाना.... ये कैसा एहसास है, जिसने पूरे जीवन को बदल डाला है। जिंदगी बदल गई है वो सब कुछ हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ.... कहीं आपको प्यार तो नहीं हो गया है.....

पता नहीं हाँ....नहीं.... बड़ी उलझन है.... लेकिन जानें तो कैसे जानें कि आपको प्यार हो गया है। शायद हम ही आपकी कुछ मदद कर सकें। अगर ऐसे ही कुछ एहसास आपके मन में भी जाग रहे हों तो समझ लें कि आपको प्यार, प्यार और सिर्फ प्यार हो गया है। क्या ये लक्षण आपको अपने में नजर आ रहे हैं? जरा देखिए-

* हर पल मन में कुछ बेचैनी-सी महसूस होती है। सब कुछ होने के बाद भी कहीं कुछ कमी-सी लगती है।

* उसका जिक्र छिड़ते ही प्यार की खुशबू आती है। उसका नाम सुनते ही चेहरे पर शर्म की लाली छा जाती है, दिल धड़कने लगता है।

* पूरी रात इधर-उधर करवटें बदल-बदल कर ही बीतती है। नींद आती ही नहीं, आए भी तो कैसे? आँखें बंद करते ही वो सामने आ जाते हैं और फिर पूरी रात आँखों-आँखों में ही कट जाती है।

* वो साथ हों तो जिंदगी हसीन और मौसम खुशनुमा बन जाता है। आप इसी तरह की जिंदगी की ख्वाहिश करने लगते हैं।

* आपके चेहरे पर अचानक ही गजब का निखार आ जाता है। दोस्त कहने लगते हैं, 'कुछ तो चक्कर है.... लगता है ये प्यार की चमक है.... और आप शरमाकर मुँह छिपा लेते हैं।

* कभी शेरो-शायरी और कविता की ओर ध्यान न देने वाले आप अचानक ही ऐसी चीजों के दीवाने हो जाते हैं। दिन-दिन भर गजलें सुनने में बिता देते हैं। जगजीत सिंह, गुलाम अली आदि आपके फेवरेट हो जाते हैं।

* अपनी जिंदगी की हर बात उससे जुड़ी-सी लगती है।

* बस इस बात का इंतजार रहता है कि किसी भी तरह से उसका दीदार हो जाए। दीदार होने पर दिल में फूल खिल जाते हैं।

* रोमांटिक फिल्में देखना और उसकी सिचुएशन से अपने आप को जोड़ना आपको कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लगता है।

* आपको उसकी बेतुकी, बचकानी बातें भी अच्छी लगने लगती हैं और उन पर भी प्यार आता है।

* अचानक ही ईश्वर में आपका विश्वास बढ़ जाता है। आप ज्यादा दयालु और उदार हो जाते हैं।

* आप उसकी लाइफ स्टाइल अपनाने लगते हैं।
* उसको ध्यान में रखकर आप 'मैं' की बजाय अब 'हम' शब्द का इस्तेमाल ज्यादा करने लगते हैं।

* फुर्सत के पलों में आप बेवजह उसका नाम लिखने बैठ जाते हैं।

* रोमांटिक गीतों के हर शब्द पर आप गौर करने लगते हैं और हर गाना आपको अपनी ही दास्तान लगता है। कल्पना करते हुए आप साथ में गाने भी लगते हैं।

* वह शहर से कुछ दिनों के लिए बाहर हो तो बेचैनी में और तन्हाई से बचने के लिए आप बिना किसी काम के ही अपने मित्रों के साथ वक्त गुजारते हैं और उन्हें अपने किस्से सुना-सुनाकर बोर करते हैं।

* आप पूरी दुनिया को भूल बैठे हैं। आपको अपनी भी खबर नहीं रहती। उसकी याद में आप होश खो बैठते हैं। कहीं के लिए निकले हैं और कहीं निकल जाते हैं।

* उसके खयाल में आप खाना-पीना, पढ़ना लिखना सब भूल जाते हैं। ये सारे काम आपको बेकार लगते हैं।

* बिना किसी प्रयास के ही आपका वजन घटने लगता है लोग कहते हैं क्या बात है डायटिंग पर हो?

* अपनी हेयर स्टाइल तथा ड्रेसिंग स्टाइल बदलने के लिए आप 'उससे' मशविरा लेते हैं।

* आपको लगता है कि वो कभी कुछ भी गलत कर ही नहीं सकता/सकती ।

* आपने दूसरे सारे लड़कों या लड़कियों से हँसी-मजाक तक करना छोड़ दिया है, आपको अब उनका साथ अच्छा नहीं लगता है।

* आपको हर वक्त, आधी रात को भी फोन बजे तो लगता है उसी का फोन है।

* उसकी सारी कमियों में आपको खूबियाँ नजर आने लगती हैं। उसकी हर बात आपको सेक्सी/प्यारी  लगती है।

* आप अपने आप का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगते हैं।

* अब आप उसे उसके नाम से नहीं बुलाते। आपने उसे एक 'निकनेम' दे दिया है और उस 'निकनेम' से उसे पुकारते वक्त आप अपना सारा प्यार लूटा देते हैं।

* उसे देखते ही आपके दिल की धड़कन बढ़ जाती है मानो आप मीलों से भागकर चले आ रहे हों।
* उसकी हलकी-सी छुअन का एहसास आपके पूरे शरीर में हलचल मचा देता है.... और उस एक छुअन का एहसास आपके रोम-रोम में समा जाता है।

* आप बेवजह उसकी माँ-बहन या रिश्तेदारों से बड़े रिस्पेक्ट से बातें करने लगते हैं।

* उसके घिसे-पिटे जोक्स पर भी आपको बहुत हँसी आती है।

* उसकी हर बेवकूफी और गलती आपको क्यूट लगती है।

* उससे मिलने के बाद, घंटों बात करने के बाद भी आपको लगता है कि काश, थोड़ा वक्त और मिल जाता या काश, इस मुलाकात का अंजाम कभी जुदाई न होता।

* यदि वह किसी की ओर देख भी ले तो आपको गवारा नहीं, आपका दिल आहत हो जाता है।

* उसका साथ आपको अच्छा लगने लगता है और बाकी सबका साथ बोर।

* उसकी हर बात से आप सहमत हो जाते हैं। उसकी हर सलाह आपको अच्छी लगने लगती है।

* अब आपको अपनी मनपसंद का खाना अच्छा नहीं लगता। अब आप मेनू देखते समय यह ध्यान रखते हैं कि उसे क्या पसंद है।

अगर ये सब कुछ या इनमें से कुछ आपके साथ हो रहा है। तो समझ लें कि- प्यार हुआ चुपके से...!
(एक वेब पत्रिका से साभार )
                                                                                                    - केशव

Tuesday, September 14, 2010

हिन्दी

हिन्दी केवल भाषा नहीं
परिभाषा है 
भारतीयता की ,
पर्याय है
प्रत्येक दैवी-मानवी
सम्प्रेषण का .
माध्यम है
प्रबल हार्दिक , अमूल
भावुकता का ,
विनाश है
अंतस के व्यापक
तमस  का .
प्रमाण है
परमोच्च आद्य व
सनातनता का.
ध्वनि है , झंकार है .
मानस की मूकता
अर्थ  है, प्रभाव है
समग्र, पुष्ट
मानवीयता का .
हिन्दी भाषा ही नहीं
पहचान है
भारतीयता की.
हिन्दी को केवल भाषा कहना
अन्याय है ,
अपमान है ,
भारत माता का .
            --- केशव कुमार

(मैसूर  हिन्दी प्रचार परिषद् पत्रिका के मार्च २००६ में प्रकाशित )

Thursday, September 2, 2010

मधुराष्टकं -2

गुंजा  मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा विची मधुरा .
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरं .
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा   .
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ...

वन्दे कृष्णं जगद्गुरुम !!!!!!!!
अधरं मधुरं वदनं मधुरं हसितं मधुरं .
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं .
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर: पाणिर्मधुर: पादौ मधुरौ .
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं .
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं स्मरणं मधुरं .
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरं ..

Sunday, August 29, 2010

दौलत की दीवानी दिल्ली , कृषक मेध की रानी दिल्ली

दौलत की दीवानी दिल्ली , कृषक मेध की रानी दिल्ली

राष्ट्रकवि दिनकर ये पंक्तियाँ जो कहती है उस सच से हम इनदिनों फिर से रोजाना रूबरू हो रहे हैं,  हम यहाँ किसानो के साथ ही वनवासियों को जोर कर देख सकते हैं . न केवल दिल्ली में आये अलीगढ के किसान बल्कि उरीसा के उन लोगो की बात भी एक हो जाती है जो जारी कानूनों में बदलाव की मांग करते हैं . क्या कथित विकास की कीमत केवल वे  चुकाए और मौज करे दिल्ली . जो नेता इन लोगो की मांगो को हवा देते हैं उनकी सच्चाई तौलने का सवाल भी बरा है. जब सरकार इनको बताती है की उरीसा में ५४ हजार करोर का पास्को प्रोजेक्ट लगेगा या वेदांता का  केयर्न से ९.६ अरब डालर का सौदा पक्का हुआ है या कई प्रोजेक्ट रद्द किये गए हैं तो क्या देश के सबसे पिछरे इलाके कालाहांडी, बोलांगीर  के लोग उस कीमत को पैसो  में बदल कर सोच सकेंगे क्या जिन पैसो पर उनका दिन कटता है गुजरता है बीतता है ? क्या अलीगढ , मथुरा , गौतम बुद्ध नगर , आगरा के ये सीमांत ,मझोले किसान और उनके बच्चे यमुना एक्सप्रेस वे पर चलने वाली कारों और बरी लारियों को देखकर दिन बिता सकने की कला सीख  पाएंगे . उन्हें मिलने वाले मुवाबजे क्या उनके किसान होने के बदले दैनिक मजदूर बनने या सूदखोरी की दलदल की और नहीं धकेल देंगे.
मुद्दे से जुरे जागरूक लोग तो इन कथित विकास की योजनाओ के परिणामो की चर्चा  करते हुए इसे सिर्फ और सिर्फ दिल्ली के लाभ की बात बताते . इनके पास अपने मजबूत और जज्बाती तर्क भी हैं. जो लोग इस विकास को जरुरी बताते हैं या दिल्ली के साथ हैं उनके लिए मैथली भाषा की एक कहावत है ... "चले के चेत्ता नय, रहरी के मुरत्ठा." ये हमें बताता है कि दिल्ली अपने शो बाजी के लिए कैसे बाकी लोगो को जो मुखर नहीं हैं  शिकार बना रही है.जब हमारे देश का अवाम भूखा है तो हम कैसे दुनियावी शान की सोच सकते हैं ? क्यों हमारी प्राथमिकताओ को उल्टा पुल्टा किया जा रहा है . भूखे दुखी जनता वाले देश की कैसी इज्ज़त ?
१८९४ में बने भूमि अधिग्रहण कानून के बदलने की बात संसद में हो रही है पर क्या यह नाकाफी नहीं. जमीन छिनने वक़्त सरकारी कारिंदे क्या अंग्रेजो की तरह ही पेश नहीं आते .....इसका जवाब हमें वो बुजुर्ग दे सकते हैं जिन्होंने गुलामी के वो मंज़र देखे हैं . प्राध्यापको या शोध छात्रो जिन्होंने ब्रितानिया कल का अध्धयन किया है वो बताते हैं की दिल्ली का चरित्र नहीं बदला है. बस इसका लिबास बदला है." मन न रंगाया रंगाया जोगी कपरा"
दौलत की दीवानगी में दिल्ली की अमेरिकापरस्ती हो , कई जरुरी और बुनियादी मुद्दों पर संसद की चुप्पी हो पर संसद सदस्यों के वेतन पर एक रहती है.तय अनुदान जब किसानो के बदले उर्वरक उत्पादकों या अयाताको को मिलता है तो कोई नहीं बोलता पर किसानो की ख़ुदकुशी को सब भुनाना चाहते हैं.
इन मुद्दों पर दिल्ली की मिडिया का चेहरा भी धुला नहीं दिखता , विदेश से धन लाभ पा रही इस मीडिया हाउसों को कालाहांडी में राहुल बाबा दीखते हैं पर उसी तरह नाक  के नीचे किसानो की रैली नहीं दिखती या फिर उसकी खामिया ही दिखती हैं. याद  करे बीते शुक्रवार का अख़बार या गुरुवार के चैनलों को.  कुछ जानकार बताते हैं कि बिना किसान हुए भी किसानो के बारे में अधिकार पूर्वक कहा जा सकता है. मुझे लगता है कि बाकी बातो के बारे में तो कह सकते हैं पर उनके दर्द के बारे में बयाँ करना संभव नहीं. दुसरो का अनुभव किया हम देखकर नहीं समझ सकते हाँ जान जरुर सकते हैं.  "जाके पाँव न फटी बिबाई वो क्या जाने पीर पराई " कई बार लगता है कि दौलत कि दीवानगी में दिल्ली कहा तक जा सकती है ...? क्या दिल्ली किसानो, भोले वनवासियों , की लाशो को केवल गिन सकती है महसूस नहीं कर सकती . क्या दिल्ली नक्कारखाने कि तरह हो गयी है और जो कुछ सदाए आ रही वो  तूति  कि आवाज़ . क्या भारतीय संसद को किसी भगत , राजगुरु  , सुखदेव का इंतजार है.........?
शायद हम सबको भी...............